शनिवार, मार्च 06, 2021

आखिरी सांस तक कर्मयोगी बन कर जिए कामरेड प्रदुमन सिंह

  सात मार्च को उनके जन्मदिन पर विशेष चर्चा  


कुछ लोग सचमुच मसीहा बन कर ही
इस धरती पर आते हैं। उन्हें व्यक्तिगत तौर पर कभी कोई कठिनाई नहीं होती। न रूपये पैसे की और न ही किसी और तरह की। केवल अन्य लोगों के गम को हटाना और उनके जीवन को सुखी बनाना ही उनका एक मात्र लक्ष्य बन जाता है। इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इस तरह के महान लोग अपने सभी सुख आराम छोड़ कर मुसीबतों और कठिनाईओं के रास्ते पर निकल पड़ते हैं। इसी तरह के लोगों में से एक थे कामरेड प्रदुमन सिंह। हर बार की तरह 7 मार्च को उनका जन्मदिन इस बार भी आने वाला है। 

एक ऐसी शख्सियत का जन्मदिन जिसे चंडीगढ़ से प्रकाशित होने वाले लोकप्रिय मीडिया हाऊस "द ट्रिब्यून" ने पेंशन स्कीम का पितामह बताते हुए उल्लेख किया था। करीब डेढ़ पृष्ठों का एक लम्बा आलेख  वरिंदर वालिया ने लिखा था। 

यह बात विशेष उल्लेखनीय है कि वह अपनी आखिरी सांसों तक सक्रिय जीवन को समर्पित रहे। सुबह सुबह मुंह अँधेरे में उठना। अपने हाथों अपने लिए चाय का कप तैयार करना और ठीक चार बजे अपनी वर्किंग डेस्क पर आ कर बैठ जाना। वह अपनी किताबों को अक्सर सुबह सुबह ही किया करते क्यूंकि बाकी का दिन तो पार्टी के दफ्तर में मज़दूर वर्ग की समस्याएं सुनने और उन्हें हल करने में ही निकल जाता। इस लिए किताबों को पूरा करने का काम वह सुबह सुबह ही किया करते। आज उनकी बहुत सी पुस्तकें हमारे दरम्यान हैं जिनका अनुवाद और प्रकाशन पूरी दुनिया भर में पहुँच चूका है। कई भाषाओं में अब ये पुस्तकें उपलब्ध हैं। 

गर्मी के मौसम में दोपहर को घर आ कर लंच करना और थोड़ा सा आराम करना। हम देखने वालों को बहुत ही हैरानी होती कि वह दोपहर को बिस्तर पर लेटते वक़्त तो घड़ी पर एक नज़र डालते लेकिन उसके बाद नहीं इसके बावजूद ठीक 20 मिंट बाद बिना घड़ी देखे वह उठ पड़ते। उनके इस 20 मिंट के आराम को कभी किसी ने भी 21 या 22 मिंट होते न देखा। हर रोज़ केवल 20 मिंट की ब्रेक और उसके बाद चाय का कप पी कर फिर दफ्तर की तरफ। उनका यह रूटीन न कभी आंधी में टूटा और न ही कभी तेज़ बरसात में। यहां तक कि आतंक के दिनों में भी उन्होंने मज़दूर वर्ग की समस्यायों को हल करने का सिलसिला कभी न टूटने दिया। 

उन्हें कभी किसी ने ज़्यादा बोलते हुए भी न सुना। रोज़ की ज़िंदगी में भी वह बहुत कम बोलते वह भी केवल ज़रूरत पड़ने पर। उन्होंने बहुत से लोगों की सहायता भीकी, कई कई बार की लेकिन इसका भी कभी प्रचार न होने दिया। उन्होंने ज़िंदगी भर इस असूल को अपनाये रखा कि अगर एक हाथ से किसी की सहायता करो तो इसकी खबर अपने ही दुसरे हाथ को भी न होने दो। 

कामरेड सतपाल डांग उनके बचपन के साथी थे। शिक्षा के दिनों में भी एक दो क्लास सीनियर थे।  इस वरिष्ठता को कामरेड प्रदुमन सिंह कभी न भूले। ज़िंदगी के रूटीन और और सीपीआई पार्टी  कामकाज के वक़्त भी उन्होंने ज़िंदगी भर इस सीनियरिटी को हमेशां याद रखा। आजकल एक दुसरे  को पछाड़ कर आगे निकलने का जो रिवाज चल पड़ा है उसकी हवा उन्हें छू भी न पाई थी। 

मध्य वर्गीय परिवारों का हिस्सा होने के कारण ज़िंदगी हम लोगों को भी अक्सर परेशान कर देती थी। ऐसी तीखी परेशानी जिसका हल कभी नज़र न आता लेकिन उनसे थोड़ी देर बात कर के हम लोग नए उत्साह से भर जाते। मुश्किलों से लड़ने की एक नई हिम्मत आ जाती। हम मुश्किलों की तरफ देख कर उनसे घबराने की बजाये मुस्कराने वाली स्थिति में आ जाते। उनके बाद उनकी यादें भी हमें हिम्मत देती हैं लेकिन जो बात उनकी मौजूदगी में थी वह अब उनके बाद कहाँ!

सात मार्च को उनका जन्मदिन हम सभी को एक बार फिर से वही शक्ति, वही ऊर्जा, वही प्रेरणा दे रहा है। जब तक स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं होता तब तक हमें इस तरह की ऊर्जा और शक्ति की ज़रूरत कदम कदम पर पड़ती रहेगी। पूरा जीवन शोषण से मुक्त समाज के नव निर्माण में लगा देने वाली ऐसी शख्सियतों की यादों  के उजाले ही हमारा मर्गदर्शन करेंगे।  --रेक्टर कथूरिया 

गुरुवार, दिसंबर 03, 2020

ललित सुरजन व्यक्ति नहीं संस्था थे

 3rd December 2020 at 12:53 PM

उनके गौरवपूर्ण जीवन की झलक दिखा रहे हैं एल एस हरदेनिया

डाक्टर रमनसिंह के साथ एक राजनीतिक आयोजन के दौरान जनाब ललित सुरजन साहिब 

ललित सुरजन व्यक्ति नहीं संस्था थे। उनकी जितनी प्रतिबद्धता थी उतनी किसी असाधारण इंसान की ही हो सकती है। उनकी  शिक्षा, समाज सेवा, साहित्य, सांप्रदायिक सद्भाव, विश्वशांति, पाकिस्तान समेत विभिन्न देशों के साथ मैत्री, अफ्रीकी और एशियाई देशों की एकता एवं संविधान में निहित मूल्यों में अगाध आस्था थी। उनकी यह प्रतिबद्धता मात्र मौखिक या दिखावटी नहीं थी बल्कि मैदानी थी। इन सब मामलों में वह अपने पिता मायाराम सुरजन के शत-प्रतिशत उत्तराधिकारी थे। 

मेरा सौभाग्य कि मुझे मायाराम जी व ललित दोनों के साथ अनेक क्षेत्रों में काम करने का अवसर मिला था। दोनों के साथ अनेक सार्वजनिक मंच साझा किये। अनेक यात्राएं की और अनेक मैदानी गतिविधियों में शामिल हुआ। सन 1950 में जब अखिल भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ का गठन हुआ उस समय महान पत्रकार एमसी चेलापति राव के नेतृत्व में पत्रकारों के लिए घोषणा पत्र पारित किया गया था। घोषणा पत्र में यह तय किया गया था कि पत्रकार को धनी और गरीब के बीच में गरीब का साथ देना है, शोषित और शोषक के बीच में शोषित का साथ देना है। इस तरह की अनेक प्रतिबद्धताए तय की गई थी। ललित जी ने इन सब को पूरी क्षमता से निभाया। 

सामान्यतः समाचार पत्र का मालिक कलम का धनी नहीं होता परन्तु ललित और माया राम जी दोनों इसके अपवाद थे।  ललित के संपादकीय  thought-provoking होते थे।  देशबंधु ने अपनी कमाई बढ़ाने की खातिर कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। एक अच्छे लेखक व शक्तिशाली संपादक होने के साथ-साथ वे एक प्रभावशाली वक्ता भी थे।  उनकी मृत्यु हम सब के लिए अपूर्णीय क्षति है। वे छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक संपदा का हिस्सा बन गए हैं। उन्हें मेरी व मुझसे जुड़ी सभी संस्थाओं की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि। 

-एल एस हरदेनिया

मोबाईल सम्पर्क:9425301582 / 942560277 

रविवार, अप्रैल 22, 2012

कामरेड अनिल रजिमवाले ने लुधियाना में कहीं खरी खरी बातें

इन्कलाब न बटन दबाने से आयेगा और न ही थाने पर हमला करने से
लुधियाना में भी बहुत उत्साह से मनाया गया लेनिन का जन्म दिन
मानव समाज को दरपेश समस्याएं किसी दैवी शकित की तरफ से नहीं बल्कि मानव के हाथों मानव की लूट खसूट के कारन ही पैदा हो रही हैं. यह विचार आज लुधियाना में आयोजित एक विचार गोष्ठी में मुक्य वक्ता व  मार्क्सवादी दार्शनिक कामरेड अनिल र्जिम्वाले ने रखा.  इस गोष्ठी का आयोजन भारतीय कमियूनिस्ट  पार्टी की लुधियाना इकाई ने सोवियत संघ के संस्थापक व्लादिमीर लेनिन के जन्म दिवस के अवसर पर किया गया था. इसके साथ ही पार्टी विश्व भूमि दिवस को मनाना भी नहीं भूली.न्याय व  बराबरी पर आधारित भारत के विकास मार्ग की चर्चा करते हुए विचार गोष्ठी में इस बात पर चिंता  व्यक्त की गयी न-न्राब्री और बेरोज़गारी जैसी समस्याएं बहुत ही तेज़ी से लगता विकराल हो रही है. इस हकीकत को स्वीकार करने के साथ ही मार्क्सवादी किसी  थाने पर हमला करने से. इन्कलाब अगर आयेगा तो उसे आप और हम जैसे आम आदमी ही लायेंगे. उन्होंने इसके लिए बार बार कार्ल मार्क्स के हवाले दिए और याद कराया कि ,आर्क्स के रस्ते पर चल कर ही इन्कलाब आएगा.
इस बेहद गंभीर मुद्दे पर बहुत ही सहजता से लगातार बोलते हुए कामरेड अनिल ने बीच बीच में शायरी का पुट देते हुए समझाया कि सुबह होती है शाम होती है तो यह किसी दैवी शक्ति के कारन नहीं बल्कि प्रकृति और  विज्ञानं के कारण. साम्यवाद के सिद्धांतों कि विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा हर विज्ञानं ने मार्क्सवाद को और मजबूत किया, बार बार सही साबित किया. इन्कलाब में हो रही देरी की तरफ संकेत करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया की न तो बटन दबाने से इन्कलाब आने वाला है और न ही थाने पर हमला करने इन्कलाब आएगा. ढांडस बंधाते हुए उन्होंने कहा की सरमायेदारी से समाजवाद की तरफ जाता रास्ता लम्बा भी है और कठिन भी. उन्होंने स्पष्ट किया की हमारे लड़ने के कई तरीके हैं और जन संघर्षों का तरीका भी हमारा है. उन्होंने कहा की इन्कलाब आयेगा और इस के लिए इन्कलाब के मार्क्सवादी सिद्धांत जन जन तक पहुँचाने होंगें.  उन्होंने अपने लम्बे भाषण के बावजूद श्रोतायों को बांधे रखा. इक्क्लाबी सिद्धांतों के साथ साथ उन्होंने इतिहास की चर्चा भी की.  उन्होंने अख़बार निकलने के काम को भी इकलाब के लिए सहायक बताया और तकनीकी विकास के सदुपयोग की तरफ इशारा करते हुए कहा की मोबाईल और इंटरनेट का उपयोग भी इस कार्य के लिएये किया जाना चाहिए. इस सेमिनार में डाक्टर अरुण मित्र भी थे, डी पी मौड़ भी और कामरेड विजय कुमार भी और कई अन्य कामरेड भी. संगोष्ठी में महिलाएं भी बढ़ चढ़ कर शामिल थीं. -रेक्टर कथूरिया  

शनिवार, अप्रैल 21, 2012

दूसरों के लिए बार बार मरने वाला महान इन्सान: जगदीश बजाज


शुरुआत: बूँद से सागर बन जाने के सफ़र की 
रेल गाडी तेज़ी से अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रही थी. रात गहराने लगी तो थके टूटे मुसाफिर भी सोने की तैयारी करने लगे.  उस डिब्बे में एक जोड़ी भी थी जिसमें पुरुष को बहुत ही जल्द गहरी नींद आ गयी थी. उसके साथ सफ़र कर रही महिला यात्री की आँखों में भी नींद अपना रंग दिखाने लगी. इतने में ही एक टिकट चैकर आया और उसने उस महिला से टिकट माँगा. महिला यात्री पुरुष के कंधे को झंक्झौरते हुए जोर से बोली जीजा जी जीजा जी. पुरुष हडबडा कर उठा और बोला क्या बात है. महिला ने चैकर की तरफ इशारा किया और कहा टिकट..! पुरुष कोई रेलवे मुलाजिम था, उसने झट से अपनी जेब में से एक पास निकाला और चैकर के हवाले कर दिया. पास देख कर चैकर बोला श्रीमान इस पास पर आप अपनी पत्नी के साथ तो सफ़र कर सकते हैं लेकिन साली के साथ नहीं. पुरुष यात्री ने टिकट चैकर की ने सारी बात समझ कर उसे पूरे विस्तार से समझाया कि जब उसकी पहली पत्नी का देहांत हुआ तो परिवार वालों ने मेरी दूसरी  शादी  उसीकी बहन के साथ कर साथ कर दी जो रिश्ते में मेरी साली ही लगती थी. इस तरह मेरी यह प्यारी सी साली मेरी पत्नी बन गयी पर मुझे जीजा जी कहने की आदत इसे अब तक पड़ी हुयी है सो यह अब भी मुझे जीजा जी ही कहती है. यह कहानी सुनाते हुए उस बुज़ुर्ग के चेहरे पर एक नयी चमक, होठों पर कुछ  रूमानी सी मुस्कान और आँखों में हल्की सी शरारत आ गयी. कहने लगे मुझे भी बस आदत सी पड़ी हुयी है....छूटती ही नहीं...मैंने पूछा कैसी आदत...तो कहने लगे...यही...मांगने की आदत....बस मुझे पता चल जाये कि इसकी जेब में पैसे हैं...फिर मैं उन्हें निकलवा ही लेता हूँ.... कई बार इस आदत को छोड़ना चाहा छोड़ना चाहा पर यह आदत जाती ही नहीं. साथ ही वह ये भी बताते हैं कि मांगना आसान नहीं होता. सब कि औरत बन के रहना पड़ता है. हजारों झमेले सामने आते हैं. कई बार ऐसा होता है कि लोग सब के सामने रसीद बुक से पर्ची तो कटवा लेते हैं पर पैसे दिए बिना चले जाते हैं. उस हिसाब को सम्भालना, फिर उनके चक्कर लगाना और उनसे पैसे निकलवाना...सब बहुत मुश्किल है पर मैं करता हूँ.गौर तलब है कि अब तो इस आदत के कारण ही उनके बहुत से किस्से कहानियां भी अख़बारों में भी छप चुके. टीवी चैनलों पर उनके प्रोग्राम भी दिखाए जा चुके लेकिन यह आदत कभी कम नहीं हुयी. वह इस वृद्ध अवस्था में भी सक्रिय हैं.
एक बार यह बुज़ुर्ग एक विशेष आग्रह पर महाराष्ट्र में रोटरी क्लब के एक कार्यक्रम में गए. बहुत जोर देने पर जब बोलने लगे तो वहां भी कहने लगे देखिये मुझे सब अनपढ़ समझते हैं लेकिन मैंने पीएचडी की हुयी है. वास्तव में यह एक ऐसा कार्यक्रम थ जिसमें सवाल जवाब भी साथ साथ हो रहे थे. सो इस वृद्ध व्यक्ति से भी सम्मान सहित सवाल किया गया कि आपने किस विषय में पीएचडी की है. वहां भी जनाब बिना किसी झिझक के जवाब देते हुए बोले जी मांगने में. मैं मांगने में एक्सपर्ट हूँ.  इसके बाद जैसे ही उन्होंने मांगने का कारण और लम्बे समय से चल रहा अपना  मिशन बताया तो वहां नोटों की बरसात होने लागिओ और देखते ही देखते  इस वृद्ध की झोली भर गयी. 
मेरी मुराद है लुधियाना के जानेमाने धार्मिक व्यक्ति जनाब जगदीश बजाज से जो गरीब बच्चों को पढाने के साथ साथ गरीब विधवा महिलायों को हर महीने राशन भी वितरित करते हैं.  गरीब लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कम्प्यूटर, सिलाई, कढाई और ब्यूटी पार्लर चलाने जैसे कई और प्रोजेक्ट भी चलाते हैं. यह सब होता है लुधियाना के सुभानी बिल्डिंग चोंक में स्थित ज्ञान स्थल मन्दिर में. इस चौंक  की कई इमारतों में फैले इस मन्दिर को इस तरह की मजबूती देने में जगदीश बजाज ने अपनी उम्र का एक बहुत सा हिस्सा इस तरफ लगा दिया. 
मैंने एक बार पूछा बजाज साहिब लोग इस उम्र में आराम करते हैं और आप सारा सारा दिन काम. सुबह 9 नजे से लेकर मन्दिर के कार्यालय में बैठना दुखी लोगों के दुःख सुननाऔर फिर उनके कष्ट हरने के लिए मांगने के लिए निकल पड़ना. इस मिशन को लेकर फेसबुक जैसे मंच का इस्तेमाल भी बाखूबी करना...आखिर यह लगन आपको कहाँ से लगी. बजाज साहिब का चेहरा कुछ गंम्भीर हो गया.उनकी आँखें कहीं दूर अतीत में झाँकने लगीं. बस कुछ ही पलों का अंतराल और फिर बोले बात बहुत पुरानी है. हमने एक जागरण रखा था. मैं पंजाब केसरी पत्र समूह के मुख्य सम्पादक विजय चोपड़ा जी के पास गया और उन्हें निवेदन किया कि आप इस जागरण में मुख्य मेहमान बन कर आने की कृपा करें. उनके पास वक्त नहीं था और मैं उन्हें बार बार वक्त निकलने  के लिए विनती कर रहा था. इतने में ही दो महिलाएं वहां आयीं और विजय जी ने अपने किसी कर्मचारी को इशारा किया की इन्हें आटे की दो थैलियाँ  दे दो. इसके साथ ही विजय जी मुझे मुखातिब हो कर बोले अगर आप इस तरह का कोई काम करें तो मैं सुरक्षा का खतरा उठा कर भी वक्त ज़रूर निकालूँगा. मैंने उन औरतों का दर्द सुना तो मुझे अहसास हुआ कि यह काम कितना आवश्यक है.  मैंने तुरंत हाँ कर दी. इस तरह सितम्बर 1991 से केवल 51  विधवा महिलायों को राशन की राहत देने से शुरू हुआ यह सिलसिला आज भी जारी है. आज  यहाँ से राहत पाने वाली महिलायों की संख्या 51 से बढ़ कर 900 के आंकड़े को भी पार कर चुकी है.बहुत से नाम अभी प्रतीक्षा सूची में हैं.सन 2000 में यहाँ लडकियों को कम्प्यूटर सिखाने, सिलाई-कढाई सिखाने और ब्यूटी पार्लर चलाने जैसे काम भी सिखाये जा रहे हैं तांकि वे आत्म निर्भर हो सकें. 
अपने इस मिशन के लिए कई बार उन्हें इम्तिहान की घड़ियाँ  भी देखनी पड़ी. सन 2006 की 26  अप्रैल को उनकी धर्म पत्नी शांति देवी का हार्ट अटैक के कारण देहांत हो गया. रस्म क्रिया की तारीख भी आठ मई की निकली और विधवा महिलायों को राशन वितरित करने की तारीख भी पहले से ही आठ मई घोषित थी.दुःख और संकट की इस घड़ी में भी जगदीश बजाज ने कर्तव्य को नहीं भुलाया. क्रिया आठ की जगह छह मई को ही करली गई पर राहत के इस कार्यक्रम में कोई तबदीली नहीं की गयी. फिर सन 2010 में 30 दिसम्बर के दिन उनकी एक बहू का देहांत हो गया. उस समय भी रस्म क्रिया  ८ जनवरी को आती थी लेकिन इस रस्म को भी दो दिन पूर्व अर्थात 6 जनवरी को ही पोर कर लिया गया ता कि आठ जनवरी को होने वाले र्स्शन वितरण कार्यक्रम में कोई भी तबदीली न हो.  मैंने कहा आप कैसे इंसान हैं...अपने परिवारिक सदस्य को अंतिम विदा कहने के लिए एक आध कार्यक्रम भी इध उधर नहीं कर सकते....मेरी बात सुन कर उन्होंने एक लम्बा सांस लिया और बोले मैं नहीं चाहता था कि जो इंसान इस दुनिय से चला गया उसका दिन मनाते समय कोई बद दुया दे या फिर यह कहे कि इस मौत ने तो हमारा काम चौपट कर दिया.
दुनियादारी  का इतना लिहाज़  और दुखी लोगों से इतनी गहरी सम्वेदना रखने वाले जगदीश बजाज का जन्म हुआ था 10 अक्टूबर 1935 को कामरेड राम किशन के पडोस में पड़ते एक मकान में. यह मकान कोट ईसे शाह में था. झंग का यह इलाका अब पाकिस्तान में है. सं 1947 में जब हालात बिगड़े तो इस परिवार को भी पाकिस्तान छोड़ना पड़ा. कभी अमृतसर, कभी जालंधर और कभी कहीं. गर्दिश के दिन थे. आखिर 1950 में लुधियाना में आ गये. तब से लेकर यहीं पर कर्म योग की साधना  में लगे हुए हैं. सरकारी नौकरी से अपना काम और फिर अपने काम से जन सेवा का यज्ञ. आज इस यज्ञ में योगदान देने वालों की संख्या भी बहुत बड़ी है और इससे राहत लेने वालों की संख्या भी. ज्ञान स्थल मन्दिर अब मानव सेवा संस्थान के तौर पर स्थापित हो चूका है. यहाँ सभी धर्मों के लोग बिना किसी भेद भाव के आते हैं.  अगर आप भी यहाँ आना चाहें तो आपका स्वागत है. आप कभी यहाँ आ सकते हैं.  --रेक्टर कथूरिया    

शनिवार, मार्च 10, 2012

डी डी जैन कालेज में भी दीक्षांत समारोह आयोजित

388 छात्रों को मिलीं डिग्रियां: डा. सी.एस.मीना थे मुख्य मेहमान


साधना जब सफल होती है और उसे मान्यता मिलती है तो साधना मार्ग में आये हुए सभी कष्ट भूल जाते हैं और दिलो दिमाग में रह जाती है एक ख़ुशी जिसकी बराबरी दुनिया के किसी भी सुख सुविधा में सम्भव ही नहीं होती. यह ख़ुशी व्यक्ति के अंग अंग से बोलती है. इस ख़ुशी की चमक आज फिर दिखाई दी लुधियाना में उन चात्रयों के चेहरों पर जिन्हें आज उच्च शिक्षा की डिग्री मिली. 
शिक्षा के क्षेत्र में एक अलग स्थान रखने वाले देवकी देवी जैन मैमोरियल कालेज फार विमेन की कन्वोकेशन आज बहुत ही उत्साह, हर्षो उल्लास और पारंपरिक जोशो खरोश से सम्पन्न हुयी. छात्रायों के चेहरे पर एक चमक थी, उपलब्धी की, एक अलौकिक सी दिखने वाली ख़ुशी थी जो बता रही थी उनकी मेहनत और शिक्षा साधना की पूरी कहानी. विश्व विधालय अनुदान  आयोग के संयुक्त सचिव  डाक्टर सी .एस.मीना इस यादगारी अवसर पर मुख्य मेहमान थे. 
कालेज के चेयरमैन हीरा लाल जैन, अध्यक्ष केदार नाथ जैन, वरिशाथ उपाध्यक्ष राज कुमार जैन और शांति सरूप जैन, प्रबन्धक कमेरी के सचिव बिपिन जैन, मैनेजर सुरिन्दर कुमार जैन और अफिशिएटिंग प्रिंसिपल सुरिन्दर दूया भी इस अवसर मर मौजूद रहे. 
प्रिंसिपल मैडम ने जहाँ कालेज की खूबियों और उपलब्धियों की चर्चा की वहां चात्रयों और उनके माता पिता की प्रेरणा और मेहनत  को भी सराहा. उनहोंने इस अवसर पर अपने उन सहयोगियों को भी बहुत ही स्नेह और समान से याद किया जो किसी समय उनके साथ इसी कालेज में अध्यापन करते थे पर अचानक ही ज़िन्दगी की राहें जुदा होने के बाद भी उनका विकास जारी रहा और साथ ही बना रहा कालेज के साथ उनका स्नेह सम्बन्ध. आज वे बहुत उच्च पदों पर या फिर सफलता के शिखरों पर कार्य कर रहे हैं पर इतने ऊंचे मुकाम पर जाकर भी वे लोग अपने इस कालेज को नहीं भूले.. इस तरह के लोगों में से एक डाक्टर परम सैनी भी आज कन्वोकेशन के सुअवसर पर यहाँ मौजूद थे जिन्हें प्रिंसिपल मैडम ने उसी पुराने स्नेह के साथ पम्मी मैडम कह कर पुकारा. 
पौने चार सो से अधिक छात्रायों ने अपनी मेहनत और साधना को  डिग्री के रूप में मिली मान्यता का सम्मान लेकर इस दिन को अपनी ज़िन्दगी का एक यादगारी दिन बनाया. इन छात्रायों ने मीडिया  से बात करते हुए भी कहा की उन्हें आज अपनी साधना पर गर्व है और ऐसे लगता है कि जैसे उनकी ग्रैजूएशन की शिक्षा आज मुकम्मल हुयी है. इस शुभ अवसर पर किसी के चेहरे पर हंसी थी तो किसी  की आँखों में ख़ुशी के आंसू भी थे. यह यादगारी आयोजन बाद दोपहर तक जारी रहा. कन्वोकेशन रिपोर्ट:: रेक्टर कथूरिया // तस्वीरें:: संजय सूद  

सीएमसी की क्न्वोकेशन में पहुंचे डाक्टर एस एस गिल

चार कालेजों के छात्र छात्रायों को मिलीं डिग्रीयां
लुधियाना:10 मार्च:2012:: लुधियाना में दीक्षांत समारोहों का जोर रहा. सीएमसी मेडिकल कालेज और अस्पताल अकेले सीएमसी शिक्षा संस्थान में ही चार  कालेजों की कन्वोकेशन हुई. कैलिवारी चर्च के ऐन सामने चिल्ड्रन पार्क  में हुए मुख्य समारोह में सी एम सी मेडिकल कालेज, कालेज आफ नर्सिंग, और कालेज आफ फिजियोथ्रेपी के छात्र छात्रायों के चेहरों पर आज एक नई रौनक थी. होठों पर मुस्कान और आँखों में चमक. आज मिल रही थी उनकी शिक्षा को वह मान्यता जिसके लिए उन्हों ने रात रात भर जाग कर पढाई की थी. 

इस मौके पर सी एम सी अस्पताल के डायरेक्टर डाक्टर अब्राहम जी थोमस  ने मेहमानों का स्वागत किया, प्रिंसिपल डाक्टर एस एम भटटी ने ग्रेजूएट और पोस्ट ग्रेजूएटस को शपथ दिलाई. इस दिन को मेडिकल शिक्षा में ऐतिहासिक बनाते हुए 5 ग्रेजूएट्स और 25 पोस्ट ग्रेजूएट्स को डिग्रियां दे कर सम्मानित किया गया. गीतिका गेरा,सबस्तियाँ मारकर मार्कर, आशा थोमस, डेविड वर्मा,सिंथिया सारह मैथ्यू,शरुतिका गुप्ता, जेन्नी मरियम  जोर्ज, जीबी जॉन, जिनकी मारिया पाल उन प्रमुख सौभाग्य शाली विजेतायों में से थे  जिन्हें आवर्ड व मैडल दे कर सम्मानित किया गया. डाक्टर शुबिधा गर्ग को डाक्टर जसवंत गिल अवर्स से सम्मानित किया गया.  डाक्टर सुप्रिया सेन को डाक्टर अब्राहिम जी थोमस आवर्ड से नवाज़ा गया.  
 इस दीक्षांत समारोह में उन्हें उनकी डिग्री का समान देने के लिए बाबा फरीद यूनिवर्सिटी के उप कुलपति डाक्टर एस एस गिल मुख्य मेहमान बन कर ए हुए थे. उनहोंने छात्र छात्रयों को उनकी इस उप्लाब्दी पर मुबारक बाद दी उन्होंने कहा की सी एम् सी में आकर मुझे हमेशां प्रसन्नता का हसास हुआ क्यूंकि मेडिकल शक्षा के क्षेत्र में गुणवता को लगातार बढ़ाने वाले सी एम सी ने मानवता की सेवा के साथ साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी एक नया इतिहास रचा है. इस तरह कुल मिलकर यह समारोह पूरी तरह यादगारी बन गया. --रेक्टर कथूरिया 

गुरुवार, मार्च 08, 2012

प्रेम जहाँ बसते दिन-रात

मिले पथिक को छाया हरदम
पेड़, धूप सहते दिन-रात
दूर के राही  थक मत जाना  
मिहनत जो करते दिन-रात
वो दुख में रहते दिन-रात
     सुख देते सबको निज-श्रम से
     तिल-तिल कर मरते दिन-रात
मिले पथिक को छाया हरदम
पेड़, धूप सहते दिन-रात
     बाहर से भी अधिक शोर क्यों
     भीतर में सुनते दिन-रात
दूजे की चर्चा में अक्सर
अपनी ही कहते दिन-रात
     हृदय वही परिभाषित होता
     प्रेम जहाँ बसते दिन-रात
मगर चमन का हाल तो देखो
सुमन यहाँ जलते दिन-रात
परिचय
पूरा नाम है श्यामल किशोर झा और शायरी की दुनिया में जाने जाते हैं श्यामल सुमन के नाम से.
जन्म तिथि :  10.01.1960 और जन्म स्थान :  चैनपुर, जिला सहरसा, बिहार, भारत
शिक्षा :  एम० ए० - अर्थशास्त्र साथ में तकनीकी शिक्षा : विद्युत अभियंत्रण में डिप्लोमा 
वर्तमान पेशा :  प्रशासनिक पदाधिकारी टाटा स्टील, जमशेदपुर, झारखण्ड, भारत
साहित्यिक कार्यक्षेत्र :  छात्र जीवन से ही लिखने की ललक, स्थानीय समाचार पत्रों सहित देश के प्रायः सभी स्तरीय पत्रिकाओं में अनेक समसामयिक आलेख समेत कविताएँ, गीत, ग़ज़ल, हास्य-व्यंग्य आदि प्रकाशित.
स्थानीय टी.वी. चैनल एवं रेडियो स्टेशन में गीत, ग़ज़ल का प्रसारण, कई राष्ट्रीय स्तर के कवि-सम्मेलनों में शिरकत और मंच संचालन. अंतरजाल की दुनिया में पंजाब स्क्रीन के साथ साथ "अनुभूति,हिन्दी नेस्ट, साहित्य कुञ्ज, साहित्य शिल्पी, प्रवासी दुनिया, आखर कलश आदि मे अनेकानेक  रचनाएँ प्रकाशित हुयी हैं और होती रहती हैं.
गीत ग़ज़ल संकलन "रेत में जगती नदी" - कला मंदिर प्रकाशन दिल्ली 
                          "संवेदना के स्वर" - राज-भाषा विभाग पटना में प्रकाशनार्थ. इसके आलावा भी कई जगह पर मांग बढ़ रही है.
अपनी बात कहते हुए बताते हैं: इस प्रतियोगी युग में जीने के लिए लगातार कार्यरत एक जीवित-यंत्र, जिसे सामान्य भाषा में आदमी कहा जाता है और जो इसी आपाधापी से कुछ वक्त चुराकर अपने भोगे हुए यथार्थ की अनुभूतियों को समेट, शब्द-ब्रह्म की उपासना में विनम्रता से तल्लीन है-बस इतना ही। 
 श्यामल सुमन से  मोबाईल फोन पर सम्पर्क का नम्बर है:09955373288. इन रचनायों पर आपके विचारों की इंतज़ार हमेशां की तरह इसबार भी शिद्दत से बनी रहेगी.--रेक्टर कथूरिया